सोमवार, 14 अगस्त 2017

जब भगवान ने श्रीमती राधा जी से शुल्क मांगा।

एक बार श्रीवसुदेव जी ने श्रीबलदेव और श्रीकृष्ण जी के लिये गर्ग ॠषि के दामाद श्रीभागुरी को प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करते हुये गिरिराज गोवर्धन के नीचे अवस्थित गोविन्द कुण्ड के तट पर यज्ञानुष्ठान किया। इस यज्ञानुष्ठान की खबर जब चारों तरफ फैल गई तो श्रीवृषभानुनन्दिनी श्रीमती राधारानी गुरुजनों की आज्ञा लेकर सखियोंके साथ मक्खन बेचने के लिये उक्त यज्ञमण्डप की ओर चल पड़ीं।

इधर श्रीकृष्ण को पहले ही मालूम हो गया कि श्रीमती राधा रानी और उनकी गोपियाँ यज्ञमण्डप की ओर जा रही हैं। अतः वे शुल्क लेने के लिये सखाओंके साथ गोवर्धन में दान घाट के रक्षक के रूप में रास्ता रोक कर बैठ गए। वे जिस स्थान पर बैठे, उसे 'कृष्ण वेदी' कहते हैं। 
जब श्रीमती राधाजी सखियों के साथ वहाँ पहुँचीं तो श्रीकृष्ण शुल्क लेने वाले का वेश बनाकर उनसे राजा मदन को प्राप्त होने वाले पदार्थोंं को शुल्क के रूपे में देने के लिए ज़ोर देने लगे। इसी बात को लेकर दोनों में भीषण वाद-विवाद व झगड़ा आरम्भ हो गया। 
श्रीकृष्ण ने सखाओं को साथ लेकर रास्ता रोके रखा। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक वे मक्खन इत्यादि नहीं देंगी तब तक वे राधा रानी और गोपियों को जाने नहीं देंगे। जब झगड़ा चरम सीमा तक पहुंच  गया तब श्रीपौर्णमासी के बिच में पड़ने पर किसी प्रकार झगड़ा निपटा।
श्रील रूप गोस्वामी जी द्वारा रचित दान-केलि-कौमुदी में यह लीला विस्तृत रूप से वर्णित है।

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