गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

वैराग्य का आदर्श

जगद् गुरू नित्यलीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के गुरूदेव श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जी ने जीवन भर उत्कट वैराग्य का पालन किया।

वे गंगाजी के तट पर मरे हुये व्यक्तियों के पड़े वस्त्रों को गंगा जल में
धोकर, उसे कौपीन बनाकर पहन लेते थे। सज्ज्न गृहस्थियों के घर से चावल भिक्षा करके उन्हें गंगाजल में भोगोकर उसमें कुछ नमक इत्यादि मिलाकर ग्रहण कर लेते थे।

वे कभी भी किसी की खुशामद नहीं करते थे। यदि कभी कुछ भी भिक्षा न मिलती ति वे किसी से कुछ न कहकर चुपचाप गंगा की रेत खा लेते थे वा ऊपर से गंगाजल पान कर लेते थे। 
वास्तव में वे सम्पूर्ण निरपेक्ष व निष्किंचन पुरुष थे। उनकी एक आदत ये भी थी कि वे सर्व-साधारण को कोई उपदेश नहीं देते थे, परन्तु उनके शुद्ध चरित्र को देखकर सभी आकर्षित हो जाते थे।

वास्तव में वे अपने आचरण से जगत् में असली भागवत्-धर्म स्थापित कर गये।

एक बार की बात है कि श्रील सनातन गोस्वामीजी की तिरोभाव तिथि के
पहले दिन श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज अपने सेवकों को कहने लगे - कल श्रीगोस्वामी पाद जी की अप्रकट तिथि है। सो कल हम लोग महोत्सव (भण्डारा) करेंगे।

बाबाजी से महोत्सव की बात सुनकर उनके एक निकटस्थ सेवक ने पूछा -- बाबाजी! महोत्सव के लिए आवश्यक वस्तुएँ कहाँ से मिलेंगीं?

श्रीला बाबाजी महाराज जी ने कहा -- किसी को कुछ नहीं कहना। हम एक समय का भोजन कर निरन्तर हरिनाम करेंगे, यही हमारा महोत्सव है।

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