बुधवार, 31 जनवरी 2018

जब शिष्य ऐसे अद्भुत हैं, तो ज़रा सोचो उनके गुरु कितने महान होंगे !

खेतुरी नामक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। एक दिन उसके दो पुत्र हरिराम अचार्य तथा रामकृष्ण आचार्य पिताजी के आदेश पर देवी को बलि देने के लिये बकरी लेकर जा रहे थे। उन्हें ऐसा करते देख, श्रील नरोत्तम ठाकुर जी ने उन्हें हिंसा के अशुभ परिणाम के बारे में समझाते हुए, भगवान के भजन की बात बताई। आपकी बात से वे दोनों इतने प्रभावित हुये के उन्होंने बकरी को छोड़ दिया । और आपसे दीक्षा लेकर श्रीकृष्ण भजन का संकल्प लिया ।

इस कार्य से उनके पिता बहुत नाराज़ हुए। वे मिथिला से मुरारी नाम के एक विद्वान पण्डित को ले कर आये ताकि वैष्णव सिद्धान्त को गलत साबित कर सकें। किन्तु हरिराम और रामकृष्ण नामक आपके दो शिष्यों ने ही गुरु-कृपा के बल पर उस पण्डित के सारी बातों को शास्त्र के आधार पर गलत प्रमाणित कर दिया। इससे दुःखी होकर उन दोनों के पिता शिवानन्द जी ने रात के समय देवी के आगे दुःख निवेदन किया। देवी ने उसे स्वप्न में डांटते हुए वैष्णवों के विरुद्ध आचरण करने से मना कर दिया।
इस प्रकार जब कई ब्राह्मण, जैसे श्रीगंगानारायण चक्रवर्ती, इत्यादि आपके शिष्य होने लगे तो कई ब्राह्मणों ने मिल कर राजा नरसिंह के पास शिकायत लगाई कि नरोत्तम नीची जाति का होते हुए भी उच्च जाति के ब्राह्मणों पर जादू कर उनको शिष्य बना रहा है । उसको ऐसा कार्य करने से रोकना चाहिए।

राजा के साथ परामर्श करने के बाद यह फैसला हुआ कि महादिग्विजयी पण्डित श्रीरूपनारायण के द्वारा नरोत्तम ठाकुर को हराना होगा। यह सोच कर सब खेतुरी धाम की ओर चल पड़े।

उधर श्रीरामचन्द्र कविराज और श्रीगंगानारायण चक्रवर्ती को जब ये सुनने को मिला कि राजा दिग्विजयी पण्डित एवं पण्डितों के साथ एक दिन कुमारपुर के बाज़ार में विश्राम करने के बाद फिर खेतुरी में आयेंगे तो, दोनों कुमारपुर के बाज़ार में कुम्हार और पान-सुपारी की दुकानें लगा कर बैठ गये।

उस शाम जब कुछ पण्डित उनकी दुकानों पर आये, तो श्रीरामचन्द्र तथा श्रीगंगानारायण उनके साथ संस्कृत में बात करने लगे। दुकानदारों का ऐसा पाण्डित्य देख कर वे आश्चर्यचकित रह गये। बातों ही बातों में दोनों ने पण्डितों के सारे तर्कों का खण्डन कर दिया। 

जब यह बात राजा ने सुनी तो वह भी वहाँ आकर शास्त्रार्थ करने लगे। श्रीरामचन्द्र कवीराज और श्रीगंगानारायण चक्रवर्ती ने बातों ही बातों में उनके सारे विचारों का खण्डन कर शुद्ध भक्ति सिद्धान्तों की स्थापना कर दी।

राजा और पण्डित सामान्य दुकानदारों का ऐसा अद्भुत पाण्डित्य देखकर 
हैरान रह गये।

राजा को जब यह मालूम हुआ कि ये दोनों नरोत्तम ठाकुर के शिष्य हैं तो राजा ने पण्डितों से कहा कि जिनके शिष्यों से ही आप हार गये, तो उनके गुरु के पास जाने से क्या होगा? जब शिष्य ऐसे अद्भुत हैं, तो ज़रा सोचो गुरु भला कैसे होंगे?

बाद में राजा नरसिंह और रूप नारायण ने देवी के द्वारा स्वप्न में आदेश पाने पर श्रील नरोत्तम ठाकुर से क्षमा मांगी और श्रीराधा-कृष्ण के भक्त हो गये ।

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी अपनी रचना ' श्रीगौरपार्षद और गौड़ीयवैष्णवाचार्यों का संक्षिप्त चरितामृत' में बताया है कि श्रील नरोत्तम 
ठाकुर जी श्रीकृष्ण लीला में चम्पक मंजरी हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें