शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

जब आपने एक ही समय में दो शहरों में भक्तों को सम्बोधित किया

श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद के शिष्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी एक बार भारत के प्रदेश आसाम में प्रचार में थे । आसाम में श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के सरल प्रकृति के शिष्य ने श्रीमाधव माहाराज जी को निवेदन किया । उसने कहा कि मेरे पिताजी ने तो अपने जीवन में भजन नहीं किया।  मैं चाहता हूँ कि आपके द्वारा उनका श्राद्ध हो जाये ताकि उनका कल्याण हो जाये। आप मेरे पिताजी के श्राद्ध पर आयें ताकि उनका कल्याण हो । श्रीमाधव महाराज जी ने डायरी देख कर बताया कि उस समय तो वे कोलकाता में प्रचार कार्यक्रम में होंगे क्योंकि उन दिनों वहाँ सम्मेलन चल रहा होगा। उन्होंने उस शिष्य को कहा कि उस समय तो मेरा आना मुश्किल है किन्त मैं योग्य व्यक्तियों को  भेज दूँगा। बड़ी विनम्रता से उस भक्त ने कहा कि आपके आने से बहुत अच्छा होता। 


कोलकाता में प्रचार कार्यक्रम के दौरान श्रीमाधव महाराज जी ने अपने गुरु भाई (श्रील प्रभुपाद के शिष्य) श्री कृष्ण केशव दास ब्रह्मचारी, श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी तथा श्री मंगल निलय ब्रह्मचारी को आसाम भेजा। ट्रेन लेट होने के कारण आप समय पर वहाँ नहीं पहुँच पाये। जब आप उनके घर से कुछ दूरी पर थे, तो आपने देखा कि सभी लोग प्रसाद पाकर हाथ धो रहे हैं। ऐसे समय पर वहाँ जाना, श्री मंगल निलय ब्रह्मचारी ने अपना अपमान समझा। और साथियों से निवेदन किया कि हमें वहाँ नहीं जाना चाहिये, क्योंकि उन्होंने हमारी प्रतीक्षा नहीं की । वैसे प्रोग्राम खत्म भी हो गया है।                                                                                                                    


श्रील तीर्थ महाराज जी ने कहा कि आपकी बात ठीक है परन्तु हमार कोई दोष नहीं , हमारी ट्रेन लेट हो गयी। दूसरी बात जब कोलकाता जायेंगे तो  गुरुजी पूछेंगे कि प्रोग्राम कैसा रहा, तब हम क्या जवाब देंगे कि हम वहाँ गये ही नहीं ? श्रीकृष्ण केशव प्रभुजी ने भी श्रीतीर्थ महाराज जी की बात को सही ठहराया। और फिर तीनों उनके घर पहुँच गये।  


उनको देख कर सभी भक्तों में खुशी की लहर दौड़ गयी और सभी के मुख पर एक ही प्रश्न था कि आप श्रीमाधव महारज के साथ क्यों नहीं आये ? आप उनके साथ आते तो और भी अच्छा होता। श्रील केशव प्रभु जी ने कहा हमारे मठ का कोलकाता में सम्मेलन चल रहा है,  इसलिये श्रीमाधव महाराजजी नहीं आये और उन्होंने हमको भेजा है। सभी भक्तों के चेहरे देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे वे इनकी बात सुन कर हैरान हों।         

तब सबकी ओर से जिन भक्त के पिताजी का श्राद्ध था, वे बोले कि आप क्या बात करते हैं , श्रील गुरुदेव, माधव महाराज जी तो यहाँ आये थे। उन्होंने पहले प्रवचन किया, उपदेश दिये । उन्होंने स्वयं सारा अनुष्ठान किया, अभी थोड़ी देरे पहले ही यहाँ से वे निकले।                                                                                                                      



उनकी बातें सुन कर ये तीनों के तीनों हैरान हो गये। और सोचने लगे यह कैसे सम्भव है ? भक्तों ने आप तीनों को सारी जगह दिखाई जहाँ श्रीमाधव महाराज जी ने प्रवचन किया, पूजा की, श्राद्ध करवाया, प्रसाद पाया । उसके बाद आप लोगो ने स्नान इत्यादि करके प्रसाद पाया, रात को संकीर्तन किया भक्तों के साथ, और अगले दिन वापिस चल पड़े ।             


कोलकाता पहुँच कर आपने भक्तों को सबसे पहले यही पूछा कि आज कल प्रवचन कौन कर रहा है ? सभी ने जवाब दिया कि गुरु महाराज जी तथा अन्य सन्नयासी जन। आप लोगों ने पूछा कि क्या बीच में एक दो दिन गुरुजी कहीं गये थे, अथवा यहाँ नहीं थे? उत्तर मिला कि नहीं वो तो रोज यहाँ पर प्रवचन कर रहे हैं । बल्कि परसों तो उन्होंने स्वयं संकीर्त्तन भी किया। सब मठ के महात्माओं की बात सुनकर आपको हैरानी हुई।                                                                                                         
सामान रख कर आप सीधे श्रीमाधव महाराज के कमरे में गये। प्रणाम इत्यादि होने के बाद श्रीमाधव महाराज जी ने आपके हाल-चाल पूछे, यात्रा /कार्यक्रम के बारे में पुछा , इत्यादि । जवाब में श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ने कहा, ' हमारी ट्रेन थोड़ा लेट हो गयी थी परन्तु वहाँ भक्तों से सुना कि वहाँ की सारा पूजा, श्राद्ध, प्रवचन, इत्यादि सब आपने किया। श्रीतीर्थ महाराज जी की बात सुन कर श्रीमाधव महाराज जी मुस्कुराये। पुन: श्रीतीर्थ महाराज जी ने उनसे जानना चाहा कि यह कैसे सम्भव हुआ कि एक ही समय पर आप कोलकाता में यहाँ पर संकीर्त्तन / प्रवचन कर रहे थे भक्तों के साथ, और उधर दूर आसाम में भी उसी समय आप प्रवचन, पूजा और श्राद्ध कर रहे थे। इसके जवाब को श्रीमाधव महाराज जी टाल गये। और कहा कि बहुत दूर से आये हो, हाथ इत्यादि धोकर प्रसाद पाओ। 



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