सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

गौड़ीय मठ में रहन-सहन का आदर्श


द्वारा: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद 
यदि तुम्हें ऋण उठाकर भी श्री कृष्ण कीर्तन का प्रचार करना पड़े तो कृपया प्रचार करो क्योंकि उस ऋण को चुकाने के लिए तुम्हें खुद को और अधिक रूप से सेवा में नियोजित करना पड़ेगा | जब उधार देने वाला व्यक्ति अपना ऋण तुमसे वापिस लेने के लिए तुम पर दबाव डालेगा तो तुम स्वयं अधिक भिक्षा मांगने के लिए बाध्य हो जाओगे | इसके अतिरिक्त धर्म परायण गृहस्थ व्यक्ति तुम्हें तब तक भिक्षा नहीं देगा जब तक उसे तुम्हारा आचरण और व्यवहार शुद्ध नहीं लगेगा और उस समय तुम्हें दृढ संकल्प करते हुए बहुत ध्यान से अपना आचरण विशुद्ध करना पड़ेगा | मैं तुम्हारे लिए एक पाई भी छोड़ कर नहीं जाऊंगा जिससे कि भविष्य में तुम आलस में लिप्त होकर हरिकथा और हरि सेवा से परिपूर्ण अपने पारमार्थिक जीवन का त्याग करो |

मठ हरि-कीर्तन का केंद्र है और हरि-कीर्तन ही हमारा जीवन व प्राण है | यह सुनिश्चित करने के लिए कि मठ में आलस्य, बुरे व्यवहार, तुच्छ विचार, निंदा, ग्राम्य वार्ता और काम-वासना के लिए कोई स्थान नहीं है, तुम्हें द्वार-द्वार पर जाना होगा जहाँ तुम्हारे हरि-कीर्तन की लोग परीक्षा लेंगे | जब लोग यह सोचेंगे कि वह तुम्हें भिक्षा देने वाले हैं और उनका पद तुमसे श्रेष्ठ है वह अनेक प्रकार से तुम्हारी निंदा करेंगे और सोचेंगे कि तुम उनकी दया के पात्र हो | शायद उनमे से कुछ तुम्हें मारने के लिए भी तैयार हों | उस समय तुम्हें एक ओर 'तृणादपि शुनीच' होकर अपने अंदर तृण से भी अधिक दीनता लानी होगी और 'मानद' होकर दूसरों को सम्मान देना होगा वहीं दूसरी ओर तुम्हें अपने जीवन और आचरण को विशुद्ध व आदर्श बनाने के लिए बहुत ध्यान देना होगा | जब तुम साधारण लोगों के दोषों को सुधारने के लिए साधु, शास्त्र व गुरु-वर्गों की वाणी का कीर्तन करोगे तो तुम स्वयं इन गलतियों को नहीं करोगे |

यदि कोई तुम्हारी निंदा करे तो दुखी मत होना क्योंकि तुम्हारे गुरु-वर्ग, शास्त्र और महाजन पूरी तरह से दोषरहित, नित्य मुक्त और भगवान के प्रिय पार्षद हैं |
यदि कोई अज्ञानतावश उनकी निंदा करे तो तुम उन्हें वास्तविक सत्य कथा बोल कर उनकी गलती को सुधारना | ऐसा करने से तुम दोनों को लाभ होगा | यदि तुम हरि-कीर्तन के लिए आवश्यक वस्तु एकत्रित करने के लिए आलसी होकर भिक्षा छोड़कर और लोगों द्वारा आलोचना किए जाने के भय से एकांत में रहकर भजन करने को प्राथमिकता दोगे तो तुम्हारा चरित्र कभी भी निर्मल न होगा और न ही तुम्हें आध्यात्मिक जीवन प्राप्त होगा | मैं कभी भी तुम्हें एकांत में रहकर भजन करने का अवसर नहीं दूंगा जहाँ तुम यह सोचो कि तुम्हें यहाँ कोई देख-सुन नहीं सकता और ऐसी भावना से तुम हृदय से अनुशासनहीन हो जाओ | तुम मेरे बहुत प्रिय मित्र हो इसलिए मैं तुम्हें कभी भी भगवान की सेवा को छोड़ने की अनुमति नहीं दूंगा | मैं नहीं चाहता कि इस संसार में अनित्य सुख प्राप्त करने हेतु व लोगों की निंदा से बचने के लिए तुम अपनी और उनकी इन्द्रियों को संतुष्ट करने में नियुक्त हो जाओ और अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ गंवाओ |

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